5 वें धाम के रूप में प्रसिद्ध है उत्तराखंड का यह प्राचीन मंदिर, जाने क्यों खास है यह मंदिर!

उत्तराखंड राज्य अपने खूबसूरत पहाड़ों और यहां के प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।  उत्तराखंड को देवताओं की भूमि कहा जाता है क्योंकि यहां के प्रत्येक जिले में कोई ना कोई प्रसिद्ध तीर्थ या धाम स्थित है। 

उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा के बारे में तो आप सब ने सुना ही होगा। इस चार धाम यात्रा में पूरी दुनिया से लाखों की संख्या में श्रद्धालु इन तीर्थ स्थलों पर दर्शन करने पहुंचते हैं।

लेकिन आज हम आपको उत्तराखंड के पांचवें धाम के बारे में जानकारी दे रहे हैं, इसके बारे में शायद ही आपने सुना हो। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड में श्री कृष्ण भगवान को समर्पित के बारे में। जिसका उद्भव द्वापर युग में माना जाता है। अगर मान्यताओं की mane  तो द्वारिका नगरी के पानी में डूब जाने के बाद भगवान श्री कृष्णा इसी स्थान पर नागराज के रूप में प्रकट हुए थे।

सेममुखेम नागराज मंदिर

सेममुखेम नागराज मंदिर उत्तराखंड में स्थित पांचवें धाम के रूप में जाना जाता है. आपको बता दें यहां स्थित श्री कृष्णा रूपी नागराज की शिला  द्वापर युग की मानी जाती है जो की स्वयंभू है। जिसे श्री कृष्ण का रूप मानकर पूजा जाता है इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 27 फिट है और इसकी चौड़ाई 14 फीट है। यह मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की प्रताप नगर तहसील में स्थित है।

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इस मंदिर में हर 3 वर्ष के एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है . जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। क्योंकि यहां श्री कृष्ण के नागराज रूप का पूजन किया जाता है इसलिए यहां पर नाग नागिन का जोड़ा चढ़ाने के एक अनोखे परंपरा भी है।

यह है धार्मिक मान्यताएं

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान श्री कृष्णा इस स्थान पर आए उन्हें यहां का श्रम में वातावरण बहुत ही पसंद आया और उन्होंने इस स्थान को अपना निवास बनाने का मन बना लिया उसके बाद उन्होंने ब्राह्मण के रूप में यहां के राजा रामोला से रहने के लिए स्थान मांगा परंतु उन्होंने उन्हें एक साधारण मानव समझकर इनकार कर दिया राजा राममोला नागवंशी परिवार के थे।

उसके बाद स्वप्न में श्री कृष्णा ने उन्हें दर्शन दिए और पहले घटी घटना के बारे में बताया इसके बारे में जानकर राजा रामोला को बहुत शर्मिंदगी हुई और उन्होंने श्री कृष्ण भगवान से माफी मांग कर उन्हें दी गई भूमि पर इस मंदिर की स्थापना की और भगवान श्री कृष्ण से नाराज के रूप में विराजमान होने की प्रार्थना की इसके बाद द्वारिका के पानी में डूबने के बाद श्री कृष्ण ने यहां पर शिला के रूप में स्थान ग्रहण किया।

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एक अन्य मान्यता के अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्णा बाल रूप में जब ब्रज  में निवास कर रहे थे तो उनकी केंद्र यमुना नदी में गिर गई। जिसके बाद उन्होंने नदी में रहने वाले कालिया नाग को हराकर वहां से जाने का आदेश दिया।

परंतु कालिया नाग भगवान के पास  रहना चाहता था इसके बाद श्री कृष्ण के आदेश पर वह सेम मुखेम में विराजमान हुआ जहां पर उसे सदैव के लिए श्री कृष्ण का सानिध्य प्राप्त हुआ। तभी से यह मंदिर सेम मुखेम नागराज मंदिर के रूप में जाना जाता है।

ऐसे पहुंचे

उत्तराखंड के सभी प्रमुख जिलों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है यहां पर टिहरी होते हुए भी पहुंचा जा सकता है। यहां स्थित तलबला सेम तक आप अपने नीचे वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट के माध्यम से आसानी से पहुंच सकते हैं। जहां से लगभग ढाई किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद आप इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

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